नारी शरीर के रहस्य : रेखा अग्रवाल द्वारा हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक – सामाजिक | Nari Sharir Ke Rahasya : by Rekha Agrawal Hindi PDF Book
नारी शरीर के रहस्य : रेखा अग्रवाल द्वारा हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक – सामाजिक | Nari Sharir Ke Rahasya : by Rekha Agrawal Hindi PDF Book
िवषय सूची 1. नारी दहे कᳱ रचना 2. तन केभीतर का राग 3. यौवन का आर᭥भ 4. मािसक धमᭅऔर नारी जीवन 5. रज सेिनवृिᱫ


नारी शऱीर के रह य

रेखा अ
वाल
डाॅ. यतीश अ वाल
आवरण व िच
अिभम यु िस घा

ISBN :
978-81-267-1826-9
सवािधकार ©
डाॅ. यतीश अ वाल एवं रेखा अ वाल
थम सं करण 2006 दसूरी आवृि 2009
इस पु तक के सवािधकार सुरि त ह। काशक अथवा लेखक य क िलिखत अनुमित के
िबना इसके कसी भी अंश को फोटोकाॅपी एवं रका
डग
सिहत इले ाॅिनक अथवा
मशीनी, कसी भी मा यम से, अथवा ान के सं हण एवं पुन योग क णाली ारा, कसी भी प म, पुन
पा दत अथवा संचा रत-सा रत नह कया जा सकता।
कलाप
: तपस सरकार प-स ा: नरेश शमा
मू य: 50
काशक :
राजकमल काशन ाइवेट िलिमटेड
1-बी, नेताजी सुभाष माग, द
रयागंज नई द ली-110 002
वेबसाइट:www.rajkamalprakashan.com
ई-मेल: info@rajkamalprakashan.com
मु क:
बी.क्◌े . आॅफसेट
नवीन शाहदरा, द
ली-110
032
NAARI
SHAREER KE RAHASYA by Rekha Agarwal & Dr. Yatish Agarwal
िवषय सूची
![]()
1. नारी दहे क रचना
2. तन के भीतर का राग
3. यौवन का आर भ
4. मािसक धम और नारी जीवन
5. रज से िनवृि
1
नारी देह क रचना
कुदरत क लीला िनराली है। मानव और मानवी को रचते समय ाक् युग म उसने एक नया योग कया। ाणी जगत मं◌े उसने अब तक नर को ही अिधक सु दर और बलशाली बनाया था, पर मानवी को गढ़ते समय उसने इस िनयम को िबसरा दया । उसने उसे पसी बना डाला ! उसके गठन म उसने रेखा का जो सु दर और मनमोहक िव यास कया उससे सुमधुर संगीत ित विनत हो उठा। यह साि वक सान्◌ै दय नारी क ◌े मात◌ृ-प म ◌ं◌े आरै भी पख्◌ ◌ार हा ◌े िखल उठता ह।◌ै व ततु: शारी रक बनावट क दृ स ◌े ी आरै
प ुष के बीच सबसे बड़ा भेद जनन अंग का ही है। कृित से िमले इन िवशेष
अवयव के कारण ही ी माँ बनने का अपार सुख हािसल करती है और
मानव-वंश क व◌ृि कर पाती है ।
धरती पर जीवन क बुिनयाद रखते ए कृित ने एक अ भुत खेल रचा । जब ब कोिशक य ािणय क रचना ई तो उसने उनके दो अलग-अलग प कर दए: नर
और
मादा। यह योग कृित क सृजना मकता और दरूद शता का अपूव मेल था िजससे ािणय म जीने क ललक बल ई और स
तित
क सनातन ज रत पूरी ई। कृित ने मानो एक ही तीर से दो िनशाने साध िलये: एक तरफ उसने सृि -च को कायम रखने का आधार खोज िलया और दसूरी तरफ ािणय म ेम का बीज अंकु रत कर जीवन म सरसता भर दी।

ाक् युग म जब मनु य-जीवन का उदय आ तब सृि के िनय ता ने उसे भी इसी प मं◌े रचना उपयु समझा। ी और पु ष का पर पर पूरक प उसक सृजनशीलता का सबसे खूबसूरत सरंजाम है।
मानव और मानवी को रचते समय उसने फर से एक नया योग कया। ाणी जगत मं◌े अब तक वह नर को ही अिधक सु दर और बलशाली बनाता आया था, पर मानवी को गढ़ते समय उसने इस िनयम को िबसरा दया। उसने उसे पसी बना डाला-उसके गठन म उसने रेखा का जो सु
दर
व मनमोहक िव यास कया उससे सुमधुर संगीत ित विनत हो उठा। नर क सहका रणी होकर भी वह वामा कहलाने क हकदार हो गई। ‘वामा’ श द वा तव म, उसक सु
दरता
का ही बोधक है।
यह साि वक सौ दय उसके मातृ-प म और भी खर होकर िखल उठता है। मातृ-सुख म नारी क ाकृितक सृजना मकता जैसे स
पूणता पाती है। मोिनयर िविलय स के मतानुसार ी श
द
क ु पि ‘सोि ’ से ई है जो स भवतया नारी क संतान धारण करने क मता का ोतक है।
भारतीय सं
कृित
म माँ को ‘अ बा’ भी कहा गया है। अ बा श द क ु पि ‘अ ब’ धातु से ई है और अ ब का अथ गभाशय है। अं ेजी का ‘वूम’ श द भी अ ब से ही रचा गया है। अतएव िजसक ोणी म गभाशय वास करता हो, वही अ बा कहलाने क हकदार
है।
व तुतः शारी रक बनावट क दिृ से ी और पु ष के बीच सबसे बड़ा भेद जननअंग का है। कृित से िमले इन िवशेष अवयव के कारण ही ी माँ बनने का अपार सुख
हािसल करती है और मानव-वंश क वृि कर पाती है।
पर नारी
व
और मातृ व का सुख दनेेवाले ये अवयव उसे समय-समय पर क भी दतेे ह। शरीर के अ य अंग के समान उनम भी तरह-तरह क ािधयाँ और िवकार पैदा हो सकते ह। उनके ित जाग क रहना, बचाव के िलए यथास भव यास करना और कोई ािध हो जाने पर सहज रहकर त परता से इलाज कराना हर ी का धम है। िसफ इसिलए क मज जनन-अंग का है, उसे िछपाते रहना और डाॅ टर के पास जाने म शम करते रहना िब कुल गलत है। इससे मज को बढ़ने का मौका िमलता है और वह ग
भीर
होता चला
जाता है।
यह िनता त शोचनीय है क वतमान वै ािनक युग मं◌े भी भारतीय समाज म जीवन क िब कुल मौिलक या के ित द कयानूसी और दरुाव-िछपाव का वातावरण बना आ
है।
ऐसे प रवेश म पली-बढ़ी बि याँ अपना समूचा ी-जीवन शम और हया के नाम पर होम कर दतेी ह। जीवन-या के अ तरंग प तथा जननेि य से जुड़े तमाम सवाल उनके िलए ताउ या तो पराये बने रहते ह या ि़ढवादी अंधिव ास क काली कोठरी म कैद होकर रह जाते ह। इस अंधकूप से छुटकारा पाने के िलए समाज को अपनी सोच और नज रए क गहरी जाँच-पड़ताल करनी होगी; व थ वै ािनक सोच का िवकास और खुलापन ही उसके िलए नया रा
ता
रौशन कर सकता है।
हर ी के िलए आव
यक
है क वह अपनी भीतरी बनावट के बारे म जानकारी रखे; उसे मालूम हो क उसके भीतर दिुनया का सबसे अ भुत रचना-संसार छुपा आ है, िजसका हर छोटा-बड़ा अंग आपस म िमलकर उसके नारी व को फुि लत करता है। पु ष के िलए भी यह ान बोधकर है; इससे वह अपनी संिगनी के तन-मन क भाषा पढ़ सकता
है।
ी-जननेि य क ा या करते ए शरीर-िव ािनय ने उ ह दो उपखंड म िवभ
कया है: बाहरी जननांग और भीतरी जननांग। बाहरी जननांग जनन-णाली के वे अंगउपांग ह जो बाहर से य दखाई दतेे ह। इ ह कामेि याँ भी कहा गया है। उनके भीतर
िछपे
बड़े और छोटे भगो (लेिबया मेजरा और माइनरा), भगनासा (कलाइटो रस), योिनिछ (वेजाइनल ओप
नंग),
कौमायाव था तक उसे ढककर रखनेवाली िझ लीयोिन छद (हाइमन), और बाथ
लीन
ि थयाँ कामेि याँ ह। इस समूचे े का ही नाम भग (व वा) है। इसी े म योिनिछ के आधा इंच ऊपर मू िछ ि थत होता है। तन क गणना भी बा जननांग म क जाती है।
योिनमाग (वेजाइना), गभाशय (यूटरस), िड बवाही निलयाँ (फैलोिपयन ू
स)
और िड ब ि थयाँ (ओवरीज) ी के भीतरी जननांग ह और इनके ही िमल-जुलकर काय करने से वह संतान का सुख ा कर पाती है।
बाहरी और भीतरी जननांग क बनावट क जानकारी ा करना न तो कामुकता है, न
शम का िवषय क उस पर पदा डाला जाए।

बा जननेि य म सबसे कट उपांग भगो है। दाएँ और बाएँ दोन तरफ के बड़े भगो बनावट म ह ठ के समान दखते ह और भग के समूचे े को ढाँपे रखते ह। इनम चब क तह होती है िजससे ये मोटे दखाई दतेे ह। उनमं◌े यह चब यौवनोदय के साथ आती है और रजोिनवृि तक बनी रहती है। यौवन म पाँव रखते ही उनक बाहरी सतह पर और आसपास के े म बाल भी उग आते ह। बड़े भगो क भीतरी सतह पर बाल नह आते और वह बाहरी सतह क तुलना म अिधक मुलायम, नम और गुलाबी होती है।

बड़े भगो के भीतर और ठीक नीचे लघु भगो होते ह। अपनी ऊपरी सीमा पर आपस
म
िमलकर ये भगनासा को ढकने का काम करते ह और नीचे क तरफ योिनिछ से और नीचे जाकर एक-दसूरे से िमल जाते ह। उनक संवेदनशीलता और पश-चेतना ब
त
बल
होती है।
भगनासा मू िछ से लगभग एक इंच ऊपर, लघु भगो से बने वचा के आवरण से ढक
ई, मटर के दाने िजतनी, उभरी ई घं◌ुडी है। यह पंजनुमा को से बनी ई है। इसम चेतनाशील नाि़डय क भरमार होती है, जो इसे चरम संवेदनशील बनाती ह।
योिनिछ को ढाँपनेवाली पतली-सी िझ
ली
योिन छद है। क या के कुँवारी बने रहने तक सामा यतया उसम िसफ एक छोटा-सा छेद होता है िजससे मािसक ाव या रज के
दशन
होते ह। यह िछ हर क या म शु से ही अलग- अलग ास का होता है। कुछ म यह सुई क नोक जैसा महीन होता है तो कुछ मं◌े नैस गक प से इतना बड़ा और खुला होता है क उसम से दो उँगिलयाँ तक गुजर सकती ह।
यह सोच सरासर गलत है क योिन छद का अ त होना ही अ त योिन का माण है। कुछ लड़ कयां◌े का योिन
छद
इतना कोमल होता है क वह साधारण खेलकूद म ही फट जाता है। मािसक धम के दन म ाव सोखने के िलए इंटरनल सेिनटरी टे पून रखने से भी वह भंग हो सकता है। समाज म यह सोच भी ब त आम है क नववधू के अ त योिन होने पर थम िमलन के समय योिन छद से ह का र -ाव ज र होता है। ऐसी गलत-सलत कसौ टयाँ मन म बनाए रखना ठीक नह है। इनके कारण वैवािहक जीवन म वेश करते
ही
पित-प ी का जीवन बेवजह नारक य बन जाता है और अबोध नववधू पित ारा अकारण ही संदहे के कठघरे म खड़ी कर दी जाती है।
कुछ युवितय म योिन छद ब त स त होता है, िजससे थम सहवास म काफ क ठनाई उपि थत होती है। ऐसे म ी-िवशेष के पास जाकर उसे छोटे से आॅपरेशन ारा हटवाने
क
ज रत पड़ सकती है।
साधारणतया योिन छद थम संभोग के समय अपने आप आसानी से फट जाता है। उससे उस समय ह का-सा र -ाव होना सामा य है, ले कन इ ा-दु ा मामल म यह र -ाव इतना तेज होता है क तुरंत डाॅ टरी मदद लेनी पड़ती है।
दो भगो के भीतरी और िनचले भाग म बाथ
लीन
ि थयाँ ि थत होती ह। ये ास म
आधा इंच से भी कुछ छोटी होती ह। दोन बाथ लीन ि थय से एक-एक इंच ल बी निलकाएँ िनकलती ह, जो योिनिछ के ठीक पास खुलती ह। आमतौर से बाथ
लीन ि थयाँ टटोलने से महसूस नह क जा सकत । ये तभी पकड़ म आती ह जब इनम सूजन होती है। इन ि
थय
का काम योिन म ि धता पैदा करना है।
योिनिछ योिन का ार है। यह मू िछ से नीचे, लघु भगो के भीतरी कनार के
बीचोबीच बना होता है। इसका ास मू िछ से काफ बड़ा होता है।
भगमुख से गभाशय तक फैली योिन ब त कुछ एक गुफा के समान है, िजसका नीचे का िह सा संक ण और ऊपर क तरफ जानेवाला िह सा फैला आ होता है। साधारणतया इसक कुल ल
बाई
साढ़े तीन-चार इंच क होती है। शारी रक ल बाई का इस पर कोई भाव नह पड़ता।
थम सव से पूव तक योिन क दीवार मं◌े कुदरतन ही कई आड़े-ितरछे बट मौजूद
होते ह। इन बट के खुलने से ही योिन सव के समय फैल पाती है। योिन क दीवार का लचीलापन सचमुच कतना आ
यजनक
है क िशशु के ज म के समय पूरी तरह फैलने के बाद वे तुरंत िसकुड़कर अपने पूव आकार म लौट आती ह।
योिन क भीतरी सतह खपरेदार उपकला से बनी होती है, जो ब त कोमल तथा गुलाबी रंग क होती है। गौरतलब है क योिन के कसी भी िह
से
म कह कोई ि थ नह खुलती। नतीजतन कसी भी व थ ी क योिन म ाव क मा सामा यतया थोड़ी ही होती है।
यह
ाव गभाशय के मुँह से आई े मा और योिन क सतह से टूटी कोिशका से बनता है। दखेने म यह कसी जमे ए पदाथ क तरह नजर आता है और इसका रंग सफेद होता है। लेि टक एिसड क मौजूदगी इसे अ लीय बनाए रखती है, िजससे योिन म रोगाणु आसानी से पैठ नह कर पाते। ले
कन
रजोिनवृि के बाद और यौवनोदय से पूव इ ोजेन न िमलने के कारण योिन म लेि टक एिसड नह बनता और वह अ लीय न होकर ारीय होती है, िलहाजा उसम रोगाणु आसानी से डट सकते ह।

गभाशय का आकार नाशपाती क तरह होता है। वह लगभग साढ़े तीन इंच ल बा, ढाई इंच चैड़ा और डढ़े इंच मोटा होता है। बनावट और कामकाज के िहसाब से वह दो िह स म बँटा हदैगभाशयृ - ीवा (सरिव
स)
और गभाशय- शरीर (बाॅडी आॅफ द यूटरस)। गभाशय ीवा गभाशय का िनचला सँकरा भाग है जो योिन के ऊपरी और िपछले भाग म
खुलता है। उसका भीतरी िह सा खोखला होता है और उसम एक सँकरी सुरंग बनी होती है। यह ऊपर क तरफ फैलकर गभाशयशरीर म गुहा म त
दील
हो जाती है।
गभाशय ोणीगुहा (पेि
वस)
के बीचोबीच ि थत होता है और सामा
यतया
आगे क तरफ झुका रहता है। उसके आगे मू शय और पीछे क तरफ आँत होती ह।
गभाशय क अ द नी सतह खास क म के ऊतक से
बनी होती है, िजसक मोटाई मािसक-च के दन के िहसाब से िन य बदलती रहती है। इसका िनयं ण शरीर म बननेवाले से
स
हाम न करते ह।
लगभग हर 28 दन बाद मािसक-च पूरा होने पर गभाशय क अ द नी सतह न होकर िगरने लगती है। यह र -िमि त उतरन ही मािसक-ाव के प म दिृगत होती है। साधारणतया यह मािसक-ाव 3 से
5
दन तक जारी रहता है और इसक कुल मा 50 िमलीलीटर से 200 िमलीलीटर होती है। इसम
गभाशय क ऊ क य उतरन और खून िमला रहता है। यह खून साधारणतया अपने से जमता नह है। इसम
खून
के टुकड़े तभी नजर आते ह जब मािसक-ाव क मा भारी होती है।

मािसक-ाव क असामा यताएँ कई कारण से पैदा हो सकती ह। ायः उनका स
ब ध कसी भीतरी िवकार से होता है। इसक बाबत इतनी समझ और जानकारी अव य होनी चािहए क कब डाॅ
टर
के पास जाना ज री है।
िड बवाही निलयाँ गभाशय के ऊपरी भाग के दोन कोन से शु होती ह। उनका ास एक-ितहाई इंच से भी कम होता है और ल बाई तकरीबन चार इंच होती है। ये निलयाँ भीतर-ही-भीतर गभाशय क गुहा से जुड़ी रहती ह, ले
कन
इनका बाहरी िसरा िब कुल वत होता है और यह ोणीगुहा म िड ब-ि थ के पास खुलता है। पका आ िड ब इसी छोर से उसम वेश पाता है और फर अपनी या जारी रखता है।
िड ब-ि थ आकार और नाप म बादाम जैसी होती है। सामा यतया यह ोणीगुहा म ही
रहती
हदैएकृ गभाशय के दा तरफ और दसूरी गभाशय के बा तरफ। येक िड ब-ि थ म अप रप िड ब क तादाद कई हजार होती है। नवजात ब ी मं◌े यह तादाद 2,00,000 से 7,00,000 तक नापी गई है, ले
कन
उ बढ़ने के साथ यह वतः कम होती जाती है। यौवनोदय के बाद इ ह म से एक या अिधक िड ब हर माह पककर तैयार होता है और मािसक-च के म य म िड ब-ि थ से छूटकर िड बवाही नली म प चँ जाता है। वहाँ उसक मुलाकात य द पु ष-शु ाणु से हो जाए, तो कोई एक शु ाणु उसे ब धकर उसम नए जीवन का अंकुर बीज दतेा है। यह संसेिचत िड
ब
सरकता आ अगले 5 से 8 दन मं◌े गभाशय म प चँ जाता है और उसक दीवार से िचमटकर अपना नीड़ बनाता ह तथा बढ़ने लगता है। यही बढ़ते-बढ़ते लगभग 280 दन म िशशु का प ले लेता है। हर ब ा इसी तरह ज म पाता है।
यौवनोदय से लेकर रजोिनवृि तक येक व थ ी का शरीर हर माह नए जीवन का अंकुर बीजने क पूरी तैयारी करता है। इससे साफ पता चलता है क कुदरत ने संतान को कतनी मह ा दी है। कोई इसे कुदरत का अप य भी कह सकता है !
ले कन कुदरत क लीलाएँ िनराली ह। उसने इस च म ही नारी व के कई सू िपरो दए ह। नारी का वभावगत छिव-सौ दयदउृसके अवयव क सु
दर
कोमलता, दिैहक िव यास क मधुमयता का इससे अटूट स ब ध है। कैसे ? यह हम आगे जानगे।

2
तन के भीतर का राग
सौ दय और वा य के सू ी क देह क आ त रक लय-ताल से सीधे जुड़े ए ह। च मास के साथ उसका तन और मन भी वतः िहलोर लेता है। इसी से उसके भीतर मािसक-च के अहम तं क रचना होती है। इस च से गुजर कर ही उसका शरीर हर माह शु होता है और संतित धारण के िलए तैयार होता है। बा यपन क दहलीज लाँघ जैसे ही वह कशोर अव था म पाँव रखती है उसका भीतरी संसार इस लयब च से गुजरने लगता है। इसके बाद जब तक वह माँ बनने के दािय व से मु नह होती यह च अपनी उसी तर ुम के साथ हर माह उसे अपने ी होने का बोध कराता रहता है।
कृित म अ त निहत रागा मकता क गूँज नारी के तन से भी सुन पड़ती है। च मास के
साथ
उसका तन और मन भी वतः िहलोर लेता है। हर माह उसका भीतरी संसार प रवतन के एक लयब च से गुजरता है, िजसम उसके मि त क, जैव-रासायिनक , मन और शरीर क सू
म
एवं कट सहभािगता साफ दखेी जा सकती है। त ण अव था से गुजरते ए जैसे ही उसका शरीर सयाना होता है, यह मािसक-च अपनी लय खोज लेता
है
और ायः उसी तर ुम के साथ रजोिनवृि तक उसका साथ िनभाता रहता है।

इसी च के तहत वह अपनी जनन यो
य
आयु म हर माह ऋतुमती होती है और उसका शरीर हर बार फर से संतान-सुख का बीज धारण करने क तैयारी म जुट जाता है। उसका
धैय
सचमुच अ भुत है क वह हर माह यह तैयारी करता है जब क उसे ात है क आधुिनक नारी अपने पूरे जनन म काल मं◌े शायद एक-दो बार ही इसका लाभ उठा सकेगी।

मािसक-च हर माह नया जीवन रोपने के िलए तैयार रहता है गभाशय
ले कन यह तो इस मािसक-च का मा थूल प है, वा तिवकता यह है क नारी के
तन
और मन का वभावगत सौ दय इसी से अनु ािणत है। उसक मु ध कर दनेेवाली दिैहक छिव से छलछलाता नैस
गक
सौ दयदृ अंग-अंग से फु टत होती फूल-सी कोमलता, घने लहराते रेशम-से बाल, मृदु नैन-न श, सु दर मुलायम वचा, िसमटे ए क धे, उभरे ए िनत ब और उ त व , सुरीली आवाज तथा पु ष क अपे ा शा त-सौ य िच दहृर नारी का वाभािवक गुण है, िजसक जैववै
ािनक
समझ शरीर- िव ािनय ने हािसल कर ली है।
नारी के तन और मन का सू
म
िनयं ण दरअसल मि त क म बसी हाइपोथेलेमस तथा पीयूष (िप
ूटरी)
ि थय के सीधे भाव या संर ण म होता है। उनम बननेवाले जैवरसायन िड ब-ि थय पर सीधा असर डालते ह। पीयूष ि थ हाइपोथेलेमस से िनयंि
त होती है और फोलीकल टीमुले टंग हाम न (एफ.एस.एच.), यू
टनाइ जंग हाम न (एल.एच.) तथा ोलेि टन ारा िड ब-ि थय का िनयं ण करती है। इनके भाव से ही िड ब-ि थय म इ ोजेन और ोजे टेरोन हाम न बनते ह और हर माह एक नया िड
ब प रप होकर िड ब-ि थ से छूटता है। मािसक-च का पूरा घटना-च इ ह जैव-
रसायन के बढ़ने और घटने से िनयंि त होता है।
रजः ाव ब द होते ही एफ.एस.एच. क ेरणा से िड ब-ि थ म िड ब के पकने क
या शु हो जाती है। एल.एच. के साथ िमलकर वही िड ब-ि थ को इ ोजेन हाम न बनाने के िलए भी े
रत
करता है।
एल.एच. का सबसे बड़ा काम पके ए िड
ब
को िड ब-ि थ से मु कराना है। बाद म
वह िड ब-ि थ को ोजे टेरोन हाम न बनाने का यौता भी दतेा है।
इ ोजेन और ोजे टेरोन के भाव म ही गभाशय मािसक-च के मब प
रवतन
से गुजरता है। रजः ाव के तुर त बाद इ ोजेन का भाव पड़ने से गभाशय क भीतरी तह मोटी होने लगती है। च के पहले अ मं◌े उसक मोटाई एक िमलीमीटर से बढ़कर साढ़े तीन से पाँच िमलीमीटर तक हो जाती है। रजः ाव का पहला दन मािसक-च का पहला दन िगना जाता है। रजः ाव कतने दन हो, इससे दन क िगनती नह बदलती। 28 दन के च मं◌े पहला अ 14व दन पर पूरा हो जाता है। तब तक गभाशय क भीतरी तह पूरी तरह पनप जाती है। यह तैयारी वह उव रत िड ब के वागत के िलए ही करती है ता क िड ब शु ाणु से उव रत होकर आए तो आसानी से अपना नीड़ बना सके।
च के म य म, 14व दन के आसपास, पका आ िड ब, िड ब-ि थ से छूट पड़ता है। िड ब का दन-ब-दन बढ़ना और फर िड ब-ि थ से छूटना अ ासाउंड ारा दखेा जा सकता है। फोली यूलर माॅनीट रंग और ओ
ूलेशन टडी म डाॅ टर यही जाँच करता है। िड ब के िड ब-ि थ से छूटने क या ओ ूलेशन है। यह जाँच उन मामल म क जाती है िजनम पित-प ी चाहकर भी ब े का सुख हािसल करने म असमथ होते ह। परखनली िशशु णाली (इन-िव
ो
फ टलाइजेशन) म भी ी क िड ब-ि थ से िड ब ा करने के िलए यही मा यम अपनाया जाता है। यह जाँच-िविध ब त सी आधुिनक जनन तकनीक के िलए भी काम म लाई जा रही है।
िड ब-ि थ से छूटा िड ब साधारणतया च द घंट के िलए ही काम का होता है। अतः
चैबीस घंट के भीतर उसका मेल पु ष-शु ाणु से होने पर ही बात आगे बढ़ पाती है, वरना यह घड़ी कम-से-कम अगले च तक तो अव य टल जाती है।
धरती क िनर तर बढ़ती आबादी को दखेते ए यह जानकर अच भा होता है क जनन म ी के मािसक- च म कुल 3-4 दन ही ऐसे होते ह, िजनम जनन का संयोग बनता है। पु
ष
के शु ाणु मा तीन दन तक समथ रहते ह। अतः िड ब-उ सग से पहले के तीन दन म या उ सग के 24 घंट के भीतर ी-पु ष का मेल न हो, तो पूरा मािसक च खाली चला जाता है।
िड ब और शु
ाणु
िमलकर नए जीवन को बीज या नह , गभाशय अगले आठ दन के िलए उनक बाट जोहता रहता है। इस बीच ोजे
टेरोन का उस पर पूरा भाव रहता है, िजससे उसक भीतरी तह क मोटाई बढ़कर 7-8 िमलीमीटर हो जाती है।
य द गभ नह ठहरता, तो च पूरा होते ही गभाशय अपनी सफाई शु कर दतेा है। उसक मोटी ई भीतरी
तह
कटकर िगरने लगती है और उसे पोिषत करती रही धमिनयाँ नंगी हो जाती ह तथा उनसे खून रसने लगता है। भीतरी तह क उतरन और यह र ही रज बनकर यानी मािसक धम के प म कट होता है।
खुद को साफ करने म गभाशय को सामा यतया तीन से पाँच दन का समय लगता है। यह समय ही मािसक
ाव,
मािसक धम, रजः ाव, ऋतु-ाव, माहवारी,
महीना आना, कपड़े आना तथा मे एशन सरीखी सं
ा और लोक-मुहावर से सूिचत
होता है।
मािसक-ाव से कुछ रोज पहले ही िड ब-ि थयाँ इ ोजेन और ोजे टेरोन बनाना ब द कर दतेी ह। समझा जाता है क इसी से मािसक-ाव होता है और हाइपोथेलेमसिप
ूटरी
ि थय को भी यह स दशेा िमल जाता है क फर से नए मािसक-च के रचनाकम म लीन हो जाओ।
यह च इसी प म ी के रजोिनवृ होने तक साधारणतया बना रहता है। इस बीच
जब
भी वह गभवती होती है, यह च थिगत हो जाता है और सव के कुछ दन बाद ही फर से थािपत होता है।
गले मं◌े बसी थायराॅयड ि थ और उदर मं◌े आसीन एि नल ि थ का भी मािसक-च
से सीधा नाता है। कसी एक के ठीक कार काम न करने से च क लय अस तुिलत हो जाती है और मािसक धम क ािधयाँ पैदा हो जाती ह।
ी के जीवन म इ
ोजेन
और ोजे टेरोन क मह ा ब त ापक है। इ ोजेन के भाव से ही नारी अपना वभावगत सौ दय पाती है, िजसक ा या अ याय के आर भ म क जा चुक है। दिैहक सु दरता दान करने के साथ-साथ यह हाम न नारी के जनन अंग को भी सबल बनाता है। भग और योिन के व थ िवकास और उ ह त दु त बनाए रखने म इसक भूिमका ब
त
मह वपूण है। गभाशय पर इस हाम न के भाव क ा या पहले ही क जा चुक है। इसी से ी के उरोज उ त होते ह और यह हि य को भी मजबूती दतेा है। दरअसल नारी के तन-मन के तमाम सुखद प ब
त
कुछ इसी हाम न से उव रत ह। रजोिनवृि के कुछ वष बाद जब नारी का तन इ ोजेन बनाना लगभग ब द कर दतेा है, तब उसक कमी ब त खलती है और नारी का वाभािवक सौ दय ढलता चला
जाता है।
ोजे टेरोन भी नारी जीवन का संर
क
है। वह कई काय म इ ोजेन का हाथ बँटाता है। गभाशय ीवा (सरिव स) को संकुिचत बनाए रखकर वह गभवती ी क मदद करता है।
उसक
सहभािगता से ही ी के तन के सामा य िवकास क या पूरी हो पाती है। मािसक च म वह कैसे गभाशय का पालन-पोषण करता है, इसका उ
लेख
पहले हो चुका
है।
इन अन य गुण के कारण ही नारी-तन क कई ािधय म इ ोजेन और ोजे टेरोन दए जाते ह। ले
कन
इनका योग डाॅ टरी दखेरेख म समझदारी के साथ कया जाना चािहए। इनके दु
पयोग
से शरीर कई कार क पीड़ा से भी िघर सकता है।
कृित ने नारी का आ त रक संसार ब त सोच-िवचारकर रचा है। कैसे एक अबोध क या कशोर-अव था म पाँव रखते ही नवयौवना म बदल जाती हदैयहृ उसके आ
त रक
संसार का ही चम कार है, िजसके बारे म हम आगे जानगे।

3
यौवन का आर भ
शरारत म डूबा बचपन कैसे अचानक कशोर अव था म पाँव रखते ही नवयौवन म बदल जाता है, कैसे अब तक अबोध क या रही त णी के अधिखले अंग से सौ दय िबखरने लगता है, कैसे उसके चेहरे पर सोलहव सावन का सलोनापन िखल उठता हैदतृा य के िनत नए अनुभव पर काश डालता है यह अ याय। इस सि धकाल म त णी न िसफ शारी रक तर पर कई प रवतन से गुजरती है, बि क मानिसक तौर पर भी उसके भीतर तरह-तरह के सपने और नई चुनौितयाँ अंगड़ाई लेने लगती ह।
बालापन थककर सोया, यौवन ने शीश उठाया बाल मं◌े याम घटाएँ, कान मं◌े
िबजली चमक है शोभा अजब िनराली शैशव-यौवन संगम क -गु
भ संह ‘भ ’: नूरजहाँ
क या का बाल तन-मन कशोर अव था म आते ही सयाना हो चलता है। पलक झपकते ही उस पर यौवन का जादू चढ़ आता है, अधिखले अंग से सौ दय िबखरने लगता है, चेहरे पर सलोनापन आ जाता है, वचा पर काि
त
िखल उठती है और उसका मन ता य के िनत नए अनुभव म डूबा रहता है। प रवतन का यह म ही वयःसि धकाल (यूबट) है, जो
उसे
थोड़े ही समय म त णी और फर वय क नारी बना दतेा है।
वयःसि धकाल क उ हर क या म अलग-अलग होती है। इस पर जाित और वंश का य भाव पड़ता है। ले कन बीते 100 वष म यह हर दशे म कम होती पाई गई है। वतमान समय म भारतीय क
या
के वयःसि धकाल म वेश करने क औसत उ 10 वष है, जब क पा ा य दशे मं◌े यह 12-13 वष है।
वयःसि धकाल का आर भ हाइपोथेलेमस से जुड़ा है। मि
त क
म बसी इस ि थ का िनदश पाकर ही पीयूष ि थ का अगला िह सा जागृत होता है और वह अपने अधीन थ हाम नल णािलय को स
य
होने का आदशे जारी करती है। उससे छूटकर आए ोथहाम न के असर से ल बाई तेजी से बढ़ने लगती है, िड ब-ि थ-ेरक हाम न के भाव म आकर िड ब-ि थयाँ काम करना शु कर दतेी ह और उनम इ ोजेन व ोजे टेरोन बनने लगता है, िजससे नारी
व
के गुण कट होते जाते हदवृ का आकार बढ़ता है, कामेि य का िवकास होता है, बगल म और नािभ के नीचे बाल उगने लगते ह, भीतरी जननांग म आकार-वृि के साथ या मक प रवतन आते ह और क या रज वला हो जाती है।
इन प
रवतन
का एक म होता है। शु आत ल बाई बढ़ने से होती है। वयःसि धकाल के एक-दो साल पहले से ही क या क ल बाई अक मात् तेजी से बढ़ने लगती है; यह गित उनके रज वला होने तक और तेज हो जाती है और फर धीरे-धीरे धीमी होती ई 15-16 वष क उ म वह बढ़नी ब द हो जाती है। िसफ तीन ितशत भारतीय क या क
ल बाई ही 16 वष के बाद कुछ और बढ़ती है।
त णाव था म आ जाने के बाद ल बाई और नह बढ़ती, िजसका ठोस कारण होता हदैहाम नलृ भाव से हि
याँ
पूरी तरह प रप हो जाती ह और उनम बढ़ने क मता ख म हो जाती है। बुिनयादी तौर पर ि क जेने टक संरचना ही यह िनधा रत करती ह क कोई कतना ल बा होगा और कस उ तक बढ़ेगा। यह गुण उसे अपने माता-िपता से िवरासत म िमलता है। माता-िपता और उनके प
रवार
के लोग ल बे ह , तो अगली पीढ़ी के ब े ायः ल बे ही होते ह, हालाँ क जेने टक िनयम के तहत कुछ का कद और भी ल बा हो जाना और कुछ का छोटा रह जाना सामा य है।
िजस तरह जेने टक संरचना पर कसी का वश नह चलता, उसी तरह ल बाई भी कसी के हाथ म नह होती। खेल के मैदान म ाॅस बार से लटकने, र सा कूदने, खास तरह से िव ािपत कए जानेवाले है
थ-फूड ब को दनेे, या िवटािमन अथवा टाॅिनक से ल
बाई म कोई फक नह पड़ता। सामा य व थ प रवेश म पला-बढ़ा ब ा, जो सामा य खुराक पाता रहा है और शरीर से व
थ
है, अपनी जेने टक संरचना के िहसाब से ल बा होता ही है। यह सोच क डाॅ टर, वै अथवा नीमहक म से कोई दवा लेकर ल बाई बढ़ाई जा सकती है, िब कुल बेबुिनयाद और गलत है।
कुछ नीमहक म िव ापन दकेर भी लोग को मूख बनाते ह क उनके पास ऐसी अचूक
दवा है िजससे 18 वष के बाद भी ल बाई बढ़ जाती है। यह दवा अिधक-से-अिधक हाथ क सफाई हो सकती है या जूत मं◌े एड़ी बढ़ाने क नेक सलाह !

वयःसि धकाल का थम ल ण तन-िवकास है। यह 8-13 वष क उ म आर भ होता है और पाँच चरण म पूरा होता है: सबसे पहले तना (िनपल) और उसके आसपास के घेरे (ए रओला) म खून का दौरा बढ़ता है, फर इस घेरे का ास बढ़ता है और तन-कली दखने लगती है। अगले चरण म दोन के आकार म वृि होती है। चैथे चरण म तना तथा उसके आसपास का घेरा अिधक उ त होकर तन से ऊपर उठ जाता है और अि तम चरण म तन के आकार म वृि होती है िजससे तना के आसपास का घेरा फर से तन
के
उठाव पर आ जाता है और िसफ तना ही आगे क तरफ उठा रह जाता है।
लगभग हर त णी व के आकार क बाबत सोचती रहती है। ले कन इस बारे म िच ता करना बेमायने है। समय से दिैहक छिव के अनु
प
उनका बढ़ना वभावगत है। कुछ मं◌े यह वृि छोटी उ म पूरी हो जाती है तो कुछ म यह थोड़ी दरे से होती है।
कसी भी तरह क म, तेल या िवटािमनयु घोल लगाने से तन का आकार नह
बढ़ाया जा सकता और न ही यह वृि कसी ायाम या ायाम-उपकरण ारा हािसल क जा सकती है।
दरअसल तन मांसपेशी से नह बने होते; उनके भीतर खास तरह का थीय ऊ क और
चब ही पाई जाती है। ायाम से इनम वृि नह आ सकती।
कमिसन दखने के िलए यह कतई ज री नह क उरोज ब त उ त ह । छोटे आकार के व दिैहक छिव के सौ दय म बाधक नह होते, उनके ित मन म कं◌ुठा रखना भूल है, उससे बचे रहने म ही समझदारी है। व का उभार मनचाहा बनाने के िलए लाि टक सजरी क शरण म जाना ब
त
तकसंगत नह है। कसी भी आॅपरेशन क तरह इसम भी नाकामयाबी या पेचीदिगय का सामना करना पड़ सकता है। कृित ारा दए गए सु
दर शरीर को य-का-य वीकार कर लेने म ही समझदारी है। उसमं◌े िवधाता क भूल से कोई ब त बड़ी अपूणता छूट जाए या बाद म िवकृित आ जाए, तभी सौ दयवधक सजरी कराने का फैसला करना चािहए।
त णाव था म तन म मािसक-च के साथ दद उठना आम बात है; इसके बारे म यहाँ इतना कह दनेा वािजब होगा क तन के आकार के अनु
प
ा पहनना भी ेय कर होता है। इससे व कसे रहते ह और सहारा िमलने से उनम खंचाव पैदा नह होता।
तन म िवकास क या शु होने के साथ बा जननांग का िवकास भी शु हो जाता है। भग, भगो और भगनासा के आकार म वृि होती है, बाथ िलन ि थयाँ काम करना शु कर दतेी ह, बगल म और नािभ से नीचे के े म बाल उगने लगते ह और त णी के शरीर से एक खास ग ध आने लगती है। उसक वचा पर एक िविश तरह क चमक और तेज दखने लगता है, ले कन क ल-मुँहास के आने से सु दरता पर दाग लगता है। धीरे-धीरे उसके अधिखले अंग से सुकुमार तन िखल उठता है।
व -िवकास शु होने के दो वष बाद वह रज
वला
हो जाती है। रज का आना यह संकेत करता है क उसके भीतरी जननांग भी प रप हो रहे ह और िड ब-ि थयाँ च वत काय करने लगी ह। ले कन इसके यह मायने िनकालना गलत होगा क उसका शरीर गभाव था का भार उठाने के िलए तैयार है। इस क
ी
उ म त णी का यौन-ड़ा म रत होना न
िसफ नैितक तौर पर बि क िवशु वै ािनक दिृ से भी िनिष है।

कशो रय और त िणय म कुछ साल तक मािसक- च अपनी लय से ायः िवचिलत होता रहता है। कम दन के अ
तर
पर बार-बार ाव होने से मन शंकाकुल ज र होता है, ले कन इससे परेशान नह होना चािहए और न ही इस बात से परेशान होना चािहए क रजः ाव या मािसक धम यादा दन के अ तर पर य हो रहा है। ऐसे म डाॅ टर के पास यादा जाने से अनाव यक ही कशोर दहे दवा के च र म फँस जाती है और वाभािवक महसूस नह कर पाती।
रज वला होने के दो-तीन साल के अ दर अिधकांश त िणय म मािसक-च क लय थािपत हो जाती है। ऋतुमती होने के दन म उसका वाभािवक रहना ही उिचत है। यह उसके नारी जीवन का सामा य और व थ अंग है िजसका सहजता से पालन करना उसका धम है। इन दन म न तो वह अछूत है, और न ही बीमार क अकेली िब तर म लेटी रहे।
वयःसि धकाल त
णी
क परी ा का समय है। इस प रवतनशील नाजुक दौर म उसका मन अनेक कार के अ त व से िघरा रहता है। उसके शरीर म मची हलचल उसे उ िेलत करती है, परेशान करती है और रोमांिचत भी करती है। उसका अवचेतन वत
होना
चाहता है और दिुनया को दखाना चाहता है क अब वह बड़ी हो चली है और अपने अ छे-बुरे का खुद फैसला कर सकती है, ले
कन
प रवार के सं कार और समाज ारा ख ची गई मान-मयादा क सीमारेखाएँ उसका रा
ता
रोके रखती ह। इससे उसका मन कभी अिनणय क ि थित म प चँ जाता है, तो कभी िव ोही हो उठता है। उसे अपने हमउ लोग क िम ता और संगित से स ता िमलती है और उसका अ तमन चाहता है क लोग उसक अ छाइय के िलए उसका आदर कर। माता-िपता और घर क बड़ी-बूि़ढय क नसीहत उसे खलती ह और वह चाहती है क अपनी मनपस द राह खोज सके। वह अपने से बड़ी उ के कुछ लोग को अपनी ेरणा बना लेती है और उनके पि च पर चलना उसे सुकून दतेा है। चाहे ऐसा करने से वह गुमराह ही य न हो जाए, उसे राह बदलना नह
सुहाता। अतएव माता-िपता के िलए यह िनता त आव यक है क वे उसक संगत पर नजर रख।

अिधकांश कशोर और कशो रयाँ भीतर से काफ अ वि थत होते ह और उनम असुर ा का भाव ब
त
ज द सर उठा लेता है। वे अपनी किमय को छुपाने के िलए ही अ सर ज रत से यादा बहादरुी का नौटंक -जैसा उलट-पुलट वहार करते और उ ता दखाते ह। यह उनके अ
तमन
का वाँग होता है। उनके वहार म सोच, ता ककता और ावहा रकता क सवथा कमी होती है। कुछ इस सबसे मुि पाकर अ
तमुखी हो जाते ह और बौि क तथा दाशिनक गितिविधयाँ उनका सोपान बन जाती ह। ले
कन
कइय म जीवन क समझ दरे से िवकिसत होती है और तब तक उनका वहार मनचला बना रहता है ।
घर पर ही भाइय क तुलना म भेदभावपूण रवैया त
णी
के मन को ब ध जाता है, िजससे अनाव यक ही वह हीन भाव और असुर ा क भावना से िसत हो उठती है। नारी-आ दोलन तब तक कोरा नारा है जब तक क समाज, कुटु ब और घर-प रवार म क या के ित वहार नह सुधरता। उसे परव रश के दौरान बराबर क सुिवधाएँ और
ेह िमलना ही चािहए।
कशोर अव था म लड़ कय का लड़क क तरफ और लड़क का लड़ कय के ित आक षत होना वाभािवक है। ले कन जीवन के इस नाजुक दौर म कोई भी बड़ा कदम उठाने से पहले पूरी ि
थित
को ठीक से समझ लेने म ही समझदारी है, भावुकता म िलये गए िनणय पूरी उ के िलए काँटे बन सकते ह। हालाँ क इस उ म आदशवाद सर पर इतना चढ़ा होता है क जीवन क कड़वी स ाइयाँ नजर नह आत ।
कशोर अव था म तन और मन उ साह और असीम ऊजा से भरा होता है। इसे सकारा मक काय म लगाने से मन को जो स
तोष
िमलता है वह अतुलनीय है। सुखी वय क जीवन क इमारत इस बुिनयाद पर आसानी से खड़ी क जा सकती है।

4
मािसक धम और नारी जीवन
मािसक -च का ी के जीवन म ब त मह वपूण थान है, ले कन समाज म इसे लेकर अनेक ांितयाँ, अंधिव ास और भय मौजूद ह, िजनक क मत अकसर ि ाय को अपने वा य से चुकानी पड़ती है। यह संतोष क बात है क आधुिनक ी कई पुरानी और जड़ धारणा को छोड़ चुक है, फर भी ापक तर पर अभी भी काफ सुधार क गुंजाइश है। मािसक धम के ित व थ नज रया रख उसका सहज िनवाह करने से ही जीवन सुखमय हो सकता है।
ि ायाः पिव मतुमलं नैता दु यि त क हिचत्। मािस मािस रजो यासां दु
कृता यपकषित।।
(ि याँ अ यिधक पिव होती ह। वे दिूषत हो ही नह सकत । रज उनके दोष को हर माह दरू कर देता है।)
शारंगधर-प ित, 30.84
मािसक धम नारी जीवन क वाभािवक दिैहक या है। यह उसके जनन म होने का ाकृितक ल ण है िजससे साफ पता चलता है क उसक दहे म मातृ
व
का बीज बनना शु हो गया है। हर माह इसका दशन होते रहने से यह आ ि त बनती है क भीतर छुपा जनन-संसार व थ और सुचा प से काय कर रहा है। शायद इसीिलए दशे के कुछ रा य म क या के थम बार ऋतुमती होने पर बाकायदा उ सव मनाया जाता है ता क पूरे कुटु ब को यह सूचना िमल जाए क वह सु
व थ
और सुयो य है।
यह पूणतया व थ और सामा य या है, िजसक प रशु ता क ा या भारत के ाचीन सं कृत-थ म भी िमलती है। वृ चाण य म सं हीत महापंिडत आचाय चाण य के नीित-वचन म कहा गया है क-

भ मना शु यते कां यं ता म लेन शु यित। रजसा शु
यते नारी नदी वेगेन शु
यित।।
(काँसा भ म होने से शु होता है। ताँबा अ ल से शु होता है। नारी रज से शु होती है और नदी वेगपूण वाह से शु होती है)दवृृ. चाण य, 6.3
इससे यह प है क भारतीय जन-सं कृित म यह मूल िस ा त स दय से जीिवत है क मािसक धम एक प
रशोधक या है िजससे नारी क भीतरी दहे व छ बनती है।
चाण य (चैथी शती ईसा पूव) से शारंगधर (14व शती ईसवी) के काल तक भारतीय समाज म रज के ित यही भाव रहा, ले
कन
म यकाल म या उसके बाद न जाने कब और यूँ यह सोच लु हो गई और उसे अशु और अपिव या समझा जाने लगा।
आधुिनक िच क साशा ने भी मािसक धम को नारी क वभावगत या तो माना, ले
कन
उसने भी इसे िवसजन क अप रहाय दिैहक या का ही दजा दया। जैसे शरीर हर अनाव यक त व का याग कर दतेा है, वैसे ही गभाशय स
तान-बीज का नीड़ न बन पाने
पर
हर माह रज का याग करता है। फर भी वै ािनक िवचारधारा म इसे कह अशु या
अपिव
नह समझा गया।
सन् 1993 मं◌े अमे रक जीव-िव
ानी
डाॅ. मारगी ोफेट ने यह मत रखकर पूरी दिुनया का यान आकृ कया क कुदरत ने रज क या नारी को व
थ
रखने के िलए रची है। डाॅ. ोफेट के मतानुसार कुदरत सदा से िमत यी रही है और उसक रची हर या म कोई-न-कोई खास योजन ज र होता है। उनका िवचार है क रजः ाव क मािसक या का नारी जीवन म ब त बड़ा मह व है-इससे हर माह गभाशय पूरी तरह धुलकर साफ हो जाता है और उसम जीवाणु क पैठ नह हो पाती।
यही मूल ल य पूरा करने के िलए कुदरत ने इस या के दो अंग रखे हदएकृ , गभाशय ारा कचुली क तरह अपनी अ
द नी
सतही परत का पूण याग ता क जीवाणु उसके भीतर छुपे न रह जाएँ; और दो, र ारा गभाशय क धुलाई, ता
क
र म मौजूद ेत कण जीवाणु का पूरी तरह सफाया कर सक।
यह मत ऋतु-ाव क मािसक या को सचमुच एक नया नज
रया
दतेा है, जो 20व
सदी के अ त म बेशक अ तन मालूम होता है, ले कन स भवतया ाचीन भारत के िलए सनातन था।
इस वै ािनक और पुरातन पृ भूिम म य द वतमान भारतीय समाज के रवैये का आकलन
कया जाए, तो उसम सुधार क ब त बड़ी ज रत साफ नजर आती है। तरह-तरह क छुआछूत, परहजे और पाबि दयाँ न िसफ िनराधार व गलत, बि
क
दोषयु भी ह य क इनके बीच पली-बढ़ी नारी कशोराव था से ही मािसक धम को अशु और अपिव या
मानने को िववश हो जाती है। समाज के रवैये म आमूल बदलाव ही इस दोषयु ि थित को सुधार सकता है। इसक आज स त ज रत है ता क शहर म आकर एकल प रवार मं◌े बसी नारी अपराध-बोध से मु रहकर व थ और उ मु जीवन जी सके।
समाज म मािसक धम के ित कई अंधिव
ास
चिलत ह, िजनके मुतािबक ी इन दन न
तो रसोई म जाने के कािबल है, न ही वह कसी धा मक अनु ान म िह सा ले सकती है। उसके िलए ऋतुमती रहने तक ान करना, शारी
रक कामकाज करना, खेलना और ायाम करना मना है। अगर वह भूले से भी इस दौरान अचार या िड बाब द चीज को हाथ लगा दतेी है, तो उसे यह
डर
सताता रहता है क चीज खराब हो जाएगी। खुदा-न-खा ता कह सास को पता चल जाए तो उसक खैर नह !
ये सभी िव
ास
िम या और सवथा िनराधार ह। आधुिनक भारतीय नारी इनसे मु होकर ही
आनेवाली पीि़ढय के िलए व थ प रवेश तैयार कर सकती है। माता के िलए ज री है क वे
क या म मािसक धम के ित कसी भी तरह का डर न िबठाएँ और सहज रहकर आम दन क ही तरह उसका पालन करने क िमसाल सामने रख। नारी-चेतना के आ दोलन म जुटे समाज-सुधारक के िलए भी लािजमी है क वे ान क मशाल से हर घर को रौशन कर, तभी समान अिधकार क आवाज बुल द हो सकेगी।
समाज के नज
रए
म यह सुधार नारी जीवन के िलए अ य त सुखद और वा यकारी िस होगा। ले कन येक ी को कशोराव था से ही यह सीख भी लेनी होगी क
रजः ाव के दन म ि गत व छता के िलए हर रोज ान और रजः ाव को सोखने के
िलए समय से सेनेटरी नेप कन या इंटरनल टे पून बदलते रहना ब त ज री है।

य द इंटरनल टे पून अिधक सुिवधाजनक मालूम हो तो उसके इ
तेमाल मं◌े दो सावधािनयाँ ज र बरत: एक, कभी भी ल बे समय तक उसे भीतर न रहने द, और दो, सादा इंटरनल टे पून ही योग म लाएँ, ोडरटयु इंटरनल टे पून कइय को मा फक नह आता।
चाहे कोई कुछ भी कहे, इन दन म और दन क तरह हर वह काम कर िजसे करने का मन हो: नाच-गाएँ, धूम मचाएँ, घूमने जाएँ और मन हो तो खूब खेल। खान-पान म भी कसी खास परहजे क ज रत नह , िसफ नमक पर थोड़ी कटौती बरतदखृूब हरी-भरी सि जयाँ खाएँ, दधू और सुपा
य
आहार ल ता क शरीर म लौह त व और िवटािमन क पू त होती रहे। य द दहे मं◌े खून क कमी हो जाए, तो डाॅ टर क सलाह से कुछ दन के िलए आयरन, फोिलक एिसड और िवटािमन बी-12 यु गोिलयाँ अथवा कै सूल ले ल।
हर दन क तरह इन दन म पूरी न द ल और ायाम भी कर। य द क ज क िशकायत हो, तो परेशान न ह
,
इन दन म ऐसा हो सकता है। उससे छुटकारा पाने के िलए खूब पानी पीएँ और सलाद व फल खाएँ। ईसबगोल लेने से भी फायदा होता है।
सहज रहकर जीना सचमुच एक कला है। व थ अ तमन ही व थ शरीर का आधार है। कोई यह कला सीख ले तो जीवन सुगम हो जाता है।

5
रज से िनवृि
रजोिनवृि िज दगी के सफर का एक िह सा है। इसके आने पर ी का शरीर मािसक -च के ब धन से मु हो जाता है, िड ब-ि थयाँ अपने धम का पालन कर अवकाश ले लेती ह और ी जनन के दािय व से वत हो जाती है। अब उसे हर माह मािसक ाव से नह गुजरना होता। इस प रवतन के बाद भी जीवन िब कुल सामा य प से िजया जा सकता है, ले कन अपने तन-मन के वा य के ित उसे अब अित र सजगता बरतनी पड़ती है। व थ
जीवनशैली अपनाकर दल, धमिनय , हि य और शारी रक प-िव यास क सँभाल क जा सकती है।
िज दगी क नौका समय क चंचल नदी पर सदा गितमय रहती है। प रवतन से गुजरते रहना उसक फतरत है। बचपन, ता
य,
यौवन, म यम वय और बुढ़ापा उसके िह से ह, िजनसे गुजरकर ही िज दगी का सफर पूरा होता है। रजोिनवृि इसी वय-प रवतन का एक अंग है िजससे हर ी गुजरती है। इसके साथ ही उसका शरीर मािसक च के ब धन से मु हो जाता है, वयःसि धकाल पर स
य
ई िड ब ि थयाँ अपने धम का पालन कर अवकाश ले लेती ह और वह जनन के दािय व से भी वत हो जाती है। अब उसे हर माह मािसक ाव से नह गुजरना होता।
यादातर ि ाय म यह प रवतन सहज प से पूरा हो जाता है; कुछ म यह अचानक होता है, ले
कन
अिधकांश म िड ब ि थयाँ धीरे-धीरे काम करना ब द करती ह और प रवतन क पूरी या दो से तीन साल म स
पूण
होती है।
सामा यतः रजोिनवृि 40 के बाद कसी भी उ म हो सकती है, ले कन अिधकतर ि ायाँ 45 से 50 के बीच म रज से मुि पाती ह। इसक औसत उ 47 वष है, पर कुछ
ि ायाँ 55 क उ म भी मािसक-च से मु नह होत । दरअसल रजोिनवृि क उ कई चीज पर टक है, िजनमं◌े िवरासत, वा य और जलवायु मुख ह। रजोिनवृि के समय माँ तथा बहन क या उ थी, खुद का वा य कैसा है और कोई कस कार क जलवायु मं◌े रहता है, इन त य का रजोिनवृि से सीधा जुड़ाव है। -पु ि ायाँ जो गम जलवायु म रहती ह तथा िजनके प रवार म दरे से
रजोिनवृि होना सामा
य
है, आमतौर पर वयं भी 50 के बाद रजोिनवृ होती ह।
रजोिनवृि के समय नारी का शरीर कई मह
वपूण प रवतन से गुजरता है। सव थम िड ब ि थय म िड
ब के
पकने और छूटने क या क जाती है तथा ोजे टेरोन बनना ब द हो जाता है। इससे मािसक-ाव क या धीमी हो जाती है और उसक तारीख भी आगे-पीछे होती रहती है। फर कुछ समय बाद िड
ब ि थय म इ ोजेन बनना भी ब द हो जाता है, िजससे मािसक-ाव िब कुल ब द हो जाता है। यही मेनोपाॅज है िजसके बाद भी अगले
दो
से पाँच वष तक शरीर कई तरह के फेर-बदल से
गुजरता है।

िड ब ि थय के अवकाश ले लेने से शरीर म इ ोजेन और ोजे टेरोन का कुल िनमाण
ब त
थोड़ा रह जाता है, िजसका पूरे शरीर पर असर पड़ता है। इ ोजेन के अभाव म पूरी जनन णाली के अंग िसकुड़कर छोटे हो जाते ह। गभाशय और गभाशय ीवा के िसमटने
का
खुद को पता नह चलता, ले कन योिन के िसमटने से शारी रक संसग म क ठनाई उपि थत हो सकती है। आकार छोटा होने के साथ योिन क ि
धता
भी कम हो जाती ह और वह पहले क अपे ा शु क हो जाती है। उसक सतही मोटाई भी घट जाती है। इन त दीिलय के कारण योिन-सं मण का जोिखम पहले से बढ़ जाता है।
हाम नल प रवतन का शारी रक िव यास पर भी प भाव पड़ता है। तन, िनत
ब
और पेट पर चब आ जाती है। तन म थीय ऊ क पहले क बिन बत कम हो जाता है, ले कन चब बढ़ने से आकार ब त छोटा नह होता। थूलकाय होने पर उनक सुडौलता पहले से कुछ कम हो जाती है और उनम ढलकाव आ जाता है। वचा म भी बदलाव आ
जाता
है। ठोड़ी और ह ठ के आसपास बाल दखने लग सकते ह और वचा का लाव य कुछ घट जाता है।
र संचार णाली म भी कुछ प
रवतन
आ सकते ह: र चाप बढ़ सकता है, दल क धड़कन तेज हो सकती है और धड़कन म अिनयिमतता भी उपज सकती है। हि
य
म भुरभुरापन (ओि टओपोरोिसस) आ जाता है, िजससे उनक ताकत पहले से कम हो जाती है। ले कन समुिचत आहार, िवटािमन डी और कैि शयम लेते रहने, सैर और शारी रक ायाम करते रहने तथा वा
य
के ित सजग रहने से हि य क ताकत बचाई जा सकती है, जब क असावधानी बरतने से हमेशा के िलए खतरा हो जाता है और जरा-सी
चोट
से ह ी टूट सकती है। कू हे क ह ी, रीढ़ और कलाई क चोट मं◌े यह खतरा अिधक होता है।

रजोिनवृि क थम अिभ ि मािसक धम म प
रवतन
आना है। ायः या तो मािसक धम म ाव क मा कम होती जाती है या महीना समय से न होकर दरे से होने लगता है। यह म कुछ महीन तक इसी कार बना रहता है िजसके बाद धीरे-धीरे मािसक धम आना ब द हो जाता है। अगर छह महीने तक महीना न हो, तो यह इसका संकेत है क रज से िनवृि हो गई। इसके बाद य द योिन से र -ाव हो, तो उसे सामा य मानना उिचत नह है और उसके िलए ीरोगिवशेष को दखाना िनहायत ज
री
है।
कुछ ि
ाय
को एकदम अचानक भी मािसक धम से िनवृि िमल जाती है। इससे उ ह घबराना नह चािहए, हालाँ क यह शंका उठना वाभािवक है क कह गभ तो नह ठहर गया। यह वहम इसिलए भी जोर मारता है क पेट पर चब बढ़ने से पेट बढ़ता आ मालूम होता है। ऐसे म मन क आ
ि त
के िलए डाॅ टर से बेिझझक परामश लेना ही मुनािसब होता है। आव
यक
होने पर वह अ ासाउंड करके सही ि थित का पता लगा सकता है।

रजोिनवृि काल म समय-समय पर अचानक चेहरे और गदन पर गरमाहट क लहर उठना सामा य है। यह अनुभूित ायः दो िमनट तक रहती है, िजसके बाद शरीर अ सर पसीने से तर-ब-तर हो जाता है। इस पर कसी का वश नह चलता और न ही मौसम का
इस
पर असर पड़ता है। कड़ाके क ठंड म भी यह अनुभूित हो सकती है। कुछ ि ाय को यह अनुभूित रात म इस कदर परेशान करती है क न द म खलल पड़ने लगती है। ले कन अ सर ही यह क समय के साथ खुद दरू हो जाता है; य
द
यह बना रहे तो डाॅ टरी राय से दवा ली जा सकती है।
कई ि
ाय
क हाथ -पैर म सूइयाँ-सी चुभती ई मालूम होती ह, कान म घूँ-घूँ क
आवाज सुनाई दतेी है और कुछ ि ायाँ मानिसक परेशािनय से िघर जाती ह। छोटी-सेछोटी बात पर बेचैनी और घबराहट हो जाती है तथा मन का स तुलन िबगड़ जाता है। कइय मं◌े असुर ा के भाव सघन हो जाते ह, लगने लगता है क घर म कसी को भी उसक ज रत नह और न ही कसी को उसका यान है। इससे कुछ का मन िड ेशन म चला जाता है।
कुछ ि ाय का मन िब कुल असंयत हो जाता है और उ ह जरा-जरा-सी बात पर गु सा आने लगता है, हर समय उन पर िचड़िचड़ापन सवार रहता है और वे कई बार राई का
पहाड़
बना दतेी ह, िजससे घर क शाि त भंग हो जाती है।
इन मानिसक परेशािनय से मु होने के िलए समझ से काम लेना होता है। इस वयकाल म प
चँने
तक ब े ायः बड़े हो जाते ह और अपने ढंग से िज दगी जीना चाहते ह। इसका यह अथ िब कुल नह होता क उ ह माँ क िच ता नह । भाग-दौड़ के इस जीवन मं◌े उनके पास समय क कमी होना वाभािवक है। इससे मन को बेवजह छोटा नह करना
चािहए और स ब ध म दरार नह पैदा करनी चािहए। समय के सदपुयोग के िलए घरबाहर कसी रचना मक काय म हाथ बँटाने से मन व थ रहता है तथा सुख-स तोष ा होता है। यान, धम, सामािजक काय जीवन को आन द-िवभोर कर सकते ह।

प रवतन जीवन का िनयम है। उससे बचने क कोिशश नासमझी है। शरीर म उ के साथ आ रही त दीिलय को सहजता के साथ वीकार करने म ही सुख है। ले कन इसका यह अथ िब कुल नह है क शरीर क दखेभाल म ढील छोड़ी जाए या शारी रक परेशािनय को नजरअ
दाज
कया जाए।
रजोिनवृि के बाद भी जीवन िब कुल सामा य प से िजया जा सकता है। हाम नल प रवतन के कारण कई ि
ाय
म कामे छा पहले क तुलना म बढ़ जाती है, िजसके ित मन म कसी कार का पूव ह रखना ठीक नह होता। यौन-अंग म प रवतन होने के बावजूद सहवास का सुख पूववत् ा कया जा सकता है। य
द
योिन म ि धता क कमी के कारण क ठनाई मालूम हो, तो डाॅ टरी सलाह से हाम नल म या गोिलयाँ लेकर सम या ब त आसानी से हल हो सकती है। हाम
नल
म के थानीय योग से योिन क संरचना ब त कुछ पहले जैसी हो जाती है और ी उन स भािवत दु भाव से भी बची रहती है जो ल बे समय तक हाम नल (इ ोजेनयु ) गोिलयाँ लेने से हो सकते ह।
अमे रका म ए अ ययन म पाया गया है क वहाँ रजोिनवृि के बाद अिधकांश ि ायाँ व थ यौन-जीवन का सुख पाती रहती ह। कुछ को तो यह महसूस होता है क उनका
यौन-जीवन पहले क तुलना म अिधक आन
ददायक हो गया है, य क अब न तो गभ ठहरने का डर रहता है और न कोई और फ। स र क उ म भी इसीिलए 65 से 70
ितशत अमे रक ि ायाँ अपनी यौनस यता बनाए रखती ह।
भारत म ि
थितयाँ इस समय शायद इससे ब त फक ह गी, ले कन शहर म पा रवा रक ढाँचे म बदलाव आने के साथ मानिसक वत
ता
आना वाभािवक है। दांप य म यौन-सुख पित-प
ी
के स ब ध को कस कार दढ़ृ बनाता है, वह कसी से
िछपा नह है।
ले कन रजोिनवृि के ारि
भक
काल म यह सावधानी ज री है क द पित सहवासिमलन के समय उपयु गभ-िनरोधक साधन अव
य
अपनाए। जब तक रज ब द ए पूरा एक साल न बीत जाए, तब तक यह सुर ा ब त ज री है। रजोिनवृि नारी जीवन क सहज और वाभािवक अव था है। उसे जीवन का सामा य अंग मानकर चलने से शरीर और मन प रवतन क इस वेला से ब त ज द सामंज य थािपत कर लेता है। फर भी य द कोई मुि कल महसूस हो, तो डाॅ टर से राय लेने म िहच कचाना नह चािहए। थोड़े
समय
तक उसक सलाह के अनुसार हाम नल दवा लेने से शरीर आसानी से बदली ई प रि थितय के अनु
प
ढल जाता है।
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